निदान
स्त्रियों के सेक्स विकारों के कारण और उपचार के मामले में चिकित्सक दो खेमों में बंट गये हैं। हमें दोनों पर ध्यान देना है और दोनों के हिसाब से ही उपचार करना है।
पहला खेमा वाहिकीय परिकल्पना को महत्व देता है और मानता है कि किसी बीमारी (जैसे डायबिटीज और एथरोस्क्किरोसिस), प्रौढ़ता या तनाव की वजह से जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह कम होने से योनि में सूखापन आता है तथा भगशिश्न की संवेदना कम होती है जिससे यौन उत्तेजना प्रभावित होती है। ये लोग ऐसी औषधियों और मरहम प्रयोग करने की सलाह देते हैं जो जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह बढ़ाती हैं।
दूसरा खेमा हार्मोन की थ्योरी पर ज्यादा विश्वास रखता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्त्रियों के शरीर में स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन और पुरूष हार्मोन टेस्टोस्टीरोन का स्राव कम होने लगता है। ईस्ट्रोजन के कारण ही स्त्रियों में यौन-इच्छा पैदा होती है। टेस्टोस्टिरोन पुरुष हार्मोन है लेकिन यह स्त्रियों में भी कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। स्त्रियों में इसका स्राव पुरूषों के मुकाबले 5% ही होता है। यह यौवन के आगमन के लिए उत्तरदायी है जिसमें किशोर लड़कियों के जननेन्द्रियों और बगल में बाल आने शुरू हो जाते हैं। स्तन और जननेन्द्रियाँ संवेदनशील हो जाती हैं और इनमें काम-उत्तेजना होने लगती है।
पुरुष हार्मोन्स को एन्ड्रोजन के नाम से भी जाना जाता है। ये स्त्रियों में कामोत्तेजना के लिए प्रमुख हार्मोन हैं। साथ ही यह स्त्रियों में हड्डियों के विकास और घनत्व बनाये रखने के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं।
स्त्रियों के शरीर में सबसे ज्यादा टेस्टोस्टिरोन का स्राव प्रजनन काल में होता है। इस हार्मोन की अधिकतर मात्रा एक विशिष्ट बंधनकारी ग्लोब्युलिन से जुड़ी रहती है। इसका मतलब उपरोक्त महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसकी एक सिमित मात्रा ही रक्त में विद्यमान रहती है। रक्त के परीक्षण द्वारा हम रक्त में मुक्त और बंधित टेस्टोस्टिरोन का स्तर जान सकते हैं और सही निदान कर सकते हैं।
रजोनिवृत्ति में स्त्रियों के अंडाशय ईस्ट्रोजन और टेस्टोस्टिरोन दोनों का ही स्राव कम कर देते हैं। टेस्टोस्टिरोन की कमी के मुख्य लक्षण यौन इच्छा कम होना, लैंगिक कल्पनाएं, स्वप्न और विचार कम आना, स्तनाग्र, योनि और भगशिश्न की स्पर्श संवेदना कम होना है। स्वाभाविक है कि काम-उत्तेजना और चरम-आनंद की अनुभूति भी प्रभावित होगी।
साथ ही शरीर की मांस-पेशियां भी पतली होने लगती हैं, जननेन्द्रियों के बाल कम होने लगते हैं और प्रजनन अंग सिकुड़ने शुरू हो जाते हैं। योनि और आसपास के ऊतक घटने लगते हैं। संभोग में दर्द होने लगता है और सिर के बाल भी पुरुषों की भांति कम होने लगते हैं।
एक तीसरा सिद्धांत और सामने आया है जिसे अतृप्ति या असंतोष परिकल्पना कहते हैं, इसे भी ठीक से समझना जरूरी है। कई स्त्रियों में लैंगिक समस्याओं का कारण हार्मोन्स की कमी या जननेन्द्रियों में रक्त का कम प्रवाह न होना होकर संभोग के समय भगशिश्न और योनि का पर्याप्त घर्षण नहीं होना है। युवा स्त्रियों में यह बहुत महत्वपूर्ण है। कई बार स्त्री और पुरूष सेक्स के मामले में खुलकर वार्तालाप नहीं करते हैं। जिससे वे एक दूसरे की इच्छाओं, पसंद नापसंद, वरीयताओं से अनभिज्ञ रहते हैं। पुरूष को मालूम नहीं हो पाता कि वह स्त्री को किस तरह कामोत्तेजित करे, स्त्री को कौनसी यौन-क्रिड़ाएं ज्यादा भड़काती हैं, उसके शरीर के कौन से क्षेत्र वासनोत्तेजक (Erogenous) हैं और कौनसी लैंगिक मुद्राएं उसे जल्दी चरम-आनंद देती हैं। इस तरह स्त्री को मिलती है सेक्स में असंतुष्टि, आत्मग्लानि, अवसाद और लैंगिक संसर्ग से विरक्ति। यदि समय रहते समस्या का निदान और उपचार न हो पाये तो पहले आपस में तकरार, फिर संबंधों में दरार, आगे चल कर विवाहेतर सम्बंध और तलाक होने में भी देर नहीं लगती।
कुछ ही वर्षों पहले तक माना जाता था कि अधिकतर (90% से ज्यादा) स्त्री लैंगिक रोग मनोवैज्ञानिक कारणों से होते हैं। लेकिन आज धारणायें बदल गयी हैं। अंततः चिकित्सक और शोधकर्ता इसके निदान और उपचार के नये-नये आयाम ढ़ूंढ रहे हैं। आजकल देखा जा रहा है कि स्त्री लैंगिक रोग के ज्यादातर मामले किसी न किसी शारीरिक रोग के कारण हो रहे हैं, न कि मनोवैज्ञानिक कारणों से। इसलिए उपचार भी संभव हो सका है।
चिकित्सक को चाहिये कि वह एकांत और शांत परामर्श कक्ष में स्त्री को अपने पूरे विश्वास में लेकर सहज भाव से विस्तार में पूछताछ करे। रोगी से उसकी माहवारी, लैंगिक संसर्ग, व्यक्तिगत या पारिवारिक सूचनाएं, वर्तमान या अतीत में हुई कोई लैंगिक या अन्य प्रताड़ना आदि के बारे में बारीकी से पूछा जाना चाहिये। रोगी के साथी से भी अच्छी तरह पूछताछ की जानी चाहिये। एक ही प्रश्न कई तरीके से पूछना चाहिये ताकि रोगी की समस्या को समझने में कोई गलती न हो। बातचीत के दौरान उसे बीच-बीच में रोगी की आँखों में आँखे डाल कर बात करनी चाहिये और शारीरिक मुद्राओं पर भी पूरा ध्यान रखना चाहिये। स्त्री को भी बिना कुछ छुपाये अपनी समस्या स्पष्ट तरीके से चिकित्सक को बता देनी चाहिये। चिकित्सक को उन सारी औषधियों के बारे में भी बता देना चाहिये जिनका वह सेवन कर रही है। हो सकता है उसकी सारी तकलीफ कोई दवा कर रही हो और मात्र एक दवा बदलने से ही उसकी सारी तकलीफ मिट जाये।
इसके बाद चिकित्सक को बड़े ध्यान से रोगी का क्रमबद्ध तरीके से परीक्षण करना चाहिये ताकि की रोग यहीं चिन्हित कर लिए जायें। |