फेनाइलेथैलामाइन हार्मोन का यौन-जीवन एवं शरीर पर प्रभाव -
वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे शरीर में एक जैव सक्रिय रसायनिक हार्मोन होता है जिसे फेनाइलेथैलामाइन कहते हैं। शरीर में मौजूद यह रसायन ही हमारे मूड अर्थात इच्छाओं में बदलाव लाने का कार्य करता है। स्त्री-पुरुष के मन में सेक्स संबंध के लिए जो इच्छा और उत्तेजना उत्पन्न होती है वह भी फेनाइलेथैलामाइन हार्मोन के द्वारा ही होती है। सेक्स के दौरान स्त्री-पुरुष में उत्तेजना, कामुक भावना और उन्मादित सेक्स इच्छा को पैदा करने का कार्य भी फेनाइलेथैलामाइन हार्मोन करता है।
टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का यौन-जीवन एवं शरीर पर प्रभाव -
शरीर का अध्ययन करने वाले कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का निर्माण व्यक्ति के शरीर में युवावस्था शुरू होने के साथ ही होने लगता है जबकि कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का निर्माण गर्भ में ही होने लगता है जो युवावस्था की शुरुआत के समय इसकी कार्यशीलता तेज हो जाती है जिससे किशोर-किशोरियां देखते-देखते ही युवक-युवती में बदल जाते हैं।
शरीर विकास की बाते करें तो किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश करने की प्रक्रिया 10 से 12 वर्ष की आयु से ही शुरू हो जाती है। इस आयु में हायपोथेलेमस और पिट्युटरी ग्रंथियां में विशेष प्रकार के हार्मोन उत्पन्न होने लगते हैं जिसे टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन कहते हैं और इस हार्मोन से शरीर में यौनांगों का विकास होने लगता है। इस हार्मोन के विकास के कुछ समय बाद ही कुछ अन्य हार्मोन का भी निर्माण शुरू हो जाता है जो शरीर के विकास के क्रम को बढ़ा देता है। एक अध्ययन से पता चला है कि किशोरावस्था में लड़कों ने टेस्टोस्टेरॉन का स्तर लड़कियों की तुलना में 20 गुना अधिक रहता है। टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की उत्पत्ति लड़कों के अंडकोषों में होता है और लड़कियों के अधिवृक्क ग्रंथि में होता है।
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