एक दृश्य - पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की शहादत के बाद अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या। हत्यारों की तलाश में हर जगह जबरदस्तत मोर्चाबंदी। लाहौर रेलवे स्टेयशन। 18 दिसम्बंर 1928। चार लोग। दो मर्द, एक औरत और एक बच्चा्। इनमें दो लोग पति-पत्नी थे और बच्चेर के साथ ट्रेन के पहले दर्जे के डिब्बे में बैठे। नौकर तीसरे दर्जे में था। ये और कोई नहीं बल्कि वे क्रांतिकारी थे, जिन्होंरने पंजाब केसरी की मौत का बदला लिया था। पति के रूप में भगत सिंह थे तो पत्नीज दुर्गावती देवी थीं और नौकर सुखदेव। दुर्गावती देवी, एक और क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की जीवन साथी और बाकि क्रांतिकरियों की दुर्गा भाभी। और इस तरह दुर्गा भाभी ने साहसी काम कर दिखाया और भगत सिंह को अपना शौहर बनाकर लाहौर से अंग्रेजों के जबड़े से निकालकर कलकत्ताा पहुँचा आयीं।
आने वाले दिनों में भगत सिंह ने जो किया, वो उन्हें शहीदे आज़म के दर्जे तक ले गया। भगत सिंह तो याद रहे पर दुर्गा भाभी आज के क्रांतिकारियों को भी याद नहीं रहीं। भगत सिंह 28 सितम्ब र 1907 में पैदा हुए थे और दुर्गा भाभी उसी साल सात अक्टू8बर को इलाहाबाद में। 11 साल की उम्र में उनकी शादी लाहौर के भगवती चरण वोहरा से हुई। भगवती चरण वोहरा पढ़ाई के दौरान क्रांतिकारी आंदोलन के हिस्सा बन गये और उनके साथ ही दुर्गावती देवी भी कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगीं। ये दोनों भगत सिंह के काफी करीब थे। क्रांतिकारी आंदोलन के जो भी खतरे थे, दुर्गा भाभी ने वो सारे खतरे उठाये और एक मजबूत क्रांतिकारी बन कर उभरीं। भगत सिंह और उनके साथियों को जब सजा हो गयी तो उन्हें छुड़ाने की योजना बनी। लाहौर में बनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने भी इनका योगदान था। इसी योजना के तहत बम बन रहे थे। उन बम का परीक्षण रावी नदी के तट पर होना तय हुआ। परीक्षण के दौरान ही बम फट गया और भगवती चरण वोहरा की मौत हो गयी... और दुर्गा भाभी को आखिरी वक्त में उनका चेहरा भी देखने को नहीं मिला। इस व्य्क्तिगत और भयानक हादसे के बावजूद वो डिगी नहीं... टूटी नहीं। आंदोलन का हिस्साभ बनी रहीं।
इसी दौरान क्रांतिकारियों ने बम्बनई के अत्याीचारी गर्वनर हेली को मारने की योजना बनाई गयी। इस योजना को अंजाम देने वालों में दुर्गा भाभी भी थीं। उन्होंगने गोलियां भी चलाईं। लेकिन यह वक्त् क्रांतिकारी आंदोलन के उरुज और अवसान दोनों का था। एक एक करके क्रांतिकारी आंदोलन के बड़े कारकुन शहीद हो गये... भगवती चरण वोहरा, शालिग्राम शुक्लऔ, चन्द्र शेखर आजाद और फिर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु। इस हालत में भी दुर्गा भाभी आंदोलन को आगे बढ़ाने की कोशिश करती रही। वे पुलिस की पकड़ में भी आयीं। जेल भी गयी और नजरबंद भी रहीं। सन् 1936 में वे गाजियाबाद आ गयीं। फिर लखनऊ। 20 जुलाई 1940 को उन्होंेने लखनऊ में पहला मांटेसरी स्कूदल स्थाकपित किया। उन्हों ने अपना मकान शहीदों के बारे में शोध के लिए दान दे दिया। आखिरी वक्तह में वे अपने पुत्र शचीन्द्र वोहरा के पास गाजियाबाद चली गयी थीं। इस महान क्रांतिकारी ने 14 अक्तू्बर 1999 को 92 साल की उम्र में हमेशा के लिए इस जहाँ से विदा ले लिया।
जिसने अपने सुख दुख की परवाह किये बगैर, बिना कुछ चाहने की ख्वाहिश रखे अपना सब कुछ दॉंव पर लगा दिया हो, उस महान महिला क्रांतिकारी को याद रखना हमारी जिम्मेयदारी है। क्या हम उस जिम्मेअदारी को निभा रहे हैं।
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